पब्लिक स्वर/ दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) चुनाव 2025 के नतीजे घोषित हो चुके हैं, और एक बार फिर ABVP (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) ने शानदार वापसी करते हुए कुल 4 में से 3 महत्वपूर्ण पदों पर जीत दर्ज की है।
इस जीत के साथ ABVP ने यह संदेश दिया है कि कैंपस में आज भी विचारधारा, संगठन और सेवा की राजनीति को छात्र प्राथमिकता देते हैं – न कि सिर्फ सोशल मीडिया की चमक को।
जीत की कुर्सी पर ABVP
अध्यक्ष: आर्यन मान (ABVP) — 28,841 वोट
सचिव: कुणाल चौधरी (ABVP)
संयुक्त सचिव: दीपिका झा (ABVP)
उपाध्यक्ष: राहुल झांसला (NSUI) — इकलौती सीट NSUI के खाते में गई
ABVP के प्रत्याशी आर्यन मान ने NSUI की जोसलीन चौधरी को बड़े अंतर से हराया। अध्यक्ष पद की यह जीत न सिर्फ संख्या में भारी थी, बल्कि छात्र राजनीति के भविष्य को भी दर्शाती है – जहाँ रील नहीं, रियलिटी चलती है।
रील बाज नेताओं को दिखाया आईना!
इस बार चुनावी मैदान में कई ऐसे उम्मीदवार थे जो इंस्टाग्राम रील्स, यूट्यूब शॉर्ट्स और वायरल वीडियो के सहारे चुनाव जीतने का सपना देख रहे थे। प्रचार में रीलें बनाना, स्टाइलिश वीडियो शूट कराना और “फैशन शो जैसा चुनाव प्रचार” करना आम बात हो गई थी।
लेकिन छात्रों ने रील-स्टार नेताओं को यह स्पष्ट संकेत दे दिया:
> "हम प्रतिनिधि चुनते हैं, रील नहीं!"
Dyal Singh कॉलेज के छात्र आरव सिंह ने कहा,
> *“सोशल मीडिया ठीक है, लेकिन DUSU का नेता हमें क्लासरूम, हॉस्टल, और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर काम करता दिखना चाहिए — न कि सिर्फ इंस्टाग्राम पर।”
कुछ संगठनों ने आरोप लगाए कि:
प्रचार के अंतिम दिन झड़पें हुईं, जिससे स्वतंत्रता पर असर पड़ा।
EVM की पारदर्शिता पर भी सवाल उठाए गए।
हालांकि चुनाव आयोग और विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन आरोपों को खारिज किया और कहा कि संपूर्ण प्रक्रिया निष्पक्ष और शांतिपूर्ण रही।
ABVP की जीत का कारण क्या रहा?
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक ABVP की जीत के पीछे निम्नलिखित प्रमुख कारण रहे:
1. संगठित प्रचार और ज़मीनी जुड़ाव: ABVP के कार्यकर्ताओं ने कॉलेज-स्तर पर संवाद, डिबेट और मदद केंद्र चलाए।
2. पिछले कार्यकाल का ट्रैक रिकॉर्ड: लाइब्रेरी समय बढ़वाना, छात्र परिवहन पर दबाव डालना, कैंपस सुरक्षा को लेकर आवाज़ उठाना — ये सब मुद्दे छात्रों को छूते हैं।
3. सोशल मीडिया का ‘संतुलित’ इस्तेमाल: जहां अन्य उम्मीदवारों ने सिर्फ रील पर ध्यान दिया, ABVP ने सोशल मीडिया को संगठनात्मक कामों को दिखाने का माध्यम बनाया।
अब आगे क्या?
अब छात्रों की उम्मीदें हैं:
विश्वविद्यालय स्तर पर हॉस्टल सुविधाओं में सुधार, महिला सुरक्षा, विभिन्न कॉलेजों में मूलभूत सुविधाएं, और छात्रवृत्ति व फॉर्मलिटी कम करने जैसे मुद्दों पर काम हो।
निष्कर्ष:
2025 के DUSU चुनाव ने एक बार फिर दिखा दिया कि छात्र राजनीति में विचारधारा, संगठन, और असली मुद्दे सबसे ऊपर होते हैं। रील्स से नाम कमाया जा सकता है, लेकिन *विश्वविद्यालय की राजनीति में "रील बाजी" नहीं, ज़मीनी सच्चाई बाजी मारती है।*

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